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विविध उपन्यास >> सीमाएँ टूटती हैं

सीमाएँ टूटती हैं

श्रीलाल शुक्ल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3130
आईएसबीएन :8126708379

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पहले ही पृष्ठ से पाठक को अपने आगोश में ले लेती कहानी

Seemayen Tootati Hain

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

दुर्गादास को एक हत्या में जनमकैद हो गई है। उसके बाद वह मानवीय सम्बन्धो की हत्या के प्रयास और उन सम्बन्धों को सर्वपरिता की यह कथा शुरू होती है।
इसमें जिस बहुरंगी संसार की रचना हुई है, वहाँ वास्तविक संसार जैसा ही उलझाव है। उसकी विश्रृंखलता में एक ओर कोई तारानाथ पारम्परिक विश्वासों के सहारे व्यवस्था खोजने की केशिश करता है और उस प्रक्रिया में अपने को खड़ा करने की ताकत पाता है, दूसरी ओर कोई विमल किसी भी स्थिति के लिए अपने को पहले से तैयार न पाकर सिर्फ कुछ होने की प्रतिक्षा करता रहता है। और धर्म, प्रेम और अपराध-जैसी तर्कातीत वृत्तियों में बँधी हुई जिन्दगी इस अव्यवस्थित उलझाव से निरन्तर झूलती रहती है।

अपराध-कथा के-से प्रवाहवाली यह रचना वास्तव में वृहत्तर जीवन की कथा है जो पाठक को सहज अवरोह के साथ अंत तक लाते-लाते उसे मानवीय नियति की अप्रत्याशित गहराइयों मे उतार देती है।

सुविख्यात उपन्यास ‘राग दरबारी’ की रचना के पाँच साल बाद प्रकाशित होनेवाला श्रीलाल शुक्ल का यह उपन्यास उनकी अन्य कृतियों से सर्वथा भिन्न है और उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा के कई ऐसे आन्तरिक स्त्रोंतों का परिचय देता है जिनका उपयोग हिन्दी कथा-साहित्य में प्रायः विरल है।
सीमाएँ टूटती हैं

 

एक

फाटक से बाहर मुड़ते ही गाड़ी के बैकव्यू मिरर में सुप्रीम कोर्ट के गोलाकार बरामदे और खंभे पुँछ गए। उनकी जगह पीछे भागती हुई सड़क और हवा से उलझती हुई टहनियों ने घेर ली। उड़ती हुई गर्द के झीनेपन में स्कूटरों के दो-एक-धब्बों को छोड़कर सारी सड़क वीरान पड़ी थी।
एक उतावले स्कूटर को दाएँ से निकलने का रास्ता देकर विमल चुपचाप गाड़ी चलाता रहा। पीछे की सीट से झुककर चाँद ने अपना सिर अगली सीट की मुँडेर पर टिका लिया था। उसका चेहरा छितरे हुए बालों में छिप गया।
विमल के पास ही अगली सीट पर राजनाथ बैठा था। उसने सुना नहीं, पर उसे लगा, एक दबी हुई सिसकी आसपास हवा में अब भी अटकी है। बिना मुड़े हुए, अपना हाथ पीछे ले जाकर उसने चाँद के बालों को थपथपाया। कहा, ‘‘चाँद,........इस तरह नहीं,....।’’

कार के भीतर गहरी खामोशी थी। उसमें यह वाक्य पानी की लकीर की तरह बिछलकर खो गया। राजनाथ ने अपना हाथ वापस खींच लिया। पिछली सीट पर चाँद से सटी हुई नीला बैठी हुई थी। उसने धीरे-से अपने बैठने का कोण बदला।
तब राजनाथ ने देखा, विमल की ओर छोड़कर सभी खिड़कियों के शीशे बंद हैं। उसने अपनी ओर का शीशा गिराया। मटियाले वसंत की हवा ने कार के अंदर की घुटन तितर-बितर कर दी। चाँद पहले की तरह अगली सीट पर सिर टेके रही। उसने अपने मत्थे के चारों ओर अपनी बाँह के घेरे से इस हवा के खिलाफ किलेबंदी-सी कर ली।
राजनाथ ने कहा, ‘‘इधर कनॉट प्लेस क्या करने चल रहे हैं अंकल ? पहले चाँद को घर छोड़ दें।’’ फिर रुककर कहा, ‘‘मैं भी सोचता हूँ वहीं रुक जाऊँगा।’’

विमल की निगाह सड़क पर थी। बोला, ‘‘घर चलकर क्या करोगे ? इससे तो अच्छा यह होगा कि तुम्हें मैं दुकान पर छोड़ दूँ। वहाँ काम में मन लगा रहेगा।’’ उसने पीछे मुड़कर देखा और कहा, ‘‘क्यों नीला ?’’
वह कोशिश करके, कुछ कृतज्ञता के साथ, मुस्कराई। चाँद के उलझे हुए बालों पर अटकती हुआ निगाह डालकर विमल फिर पहले की तरह गाड़ी चलाने लगा।
वे लोग कनॉट सर्कस आ गए थे। एक रेस्त्राँ के आगे गाड़ी रोककर विमल ने कहा, ‘‘चलो, तुम्हें एस्प्रेसो पिलाई जाए।’’ किसी ने जवाब नहीं दिया। विमल गाड़ी के बाहर आ गया।

राजनाथ भी नीचे उतर आया। अपनी ओर उसने पिछली सीट का दरवाजा खोला, उससे नीला उतरी। विमल ने चाँद के लिए दरवाजा खोलना चाहा, पर वह पहले ही गाड़ी से उतरकर फुटपाथ आ गई थी। उसके पाँव ठोस जमीन पर थे, पर जैसे वे किसी डगमगाती नाव पर टिके हुए हों। वह आँखें दबाकर धूप की ओर देख रही थी। लगता था, उसे अभी-अभी किसी तहखाने से निकालकर ठँड खाई हुई तितली की तरह बाहर छोड़ा गया है।
रेस्त्राँ के एक कोने में बैठते लगभग ही लगभग सभी ने छूट की साँस ली। विमल ने चार एस्प्रेसो काफी का आर्डर दिया। चाँद ने वेटर से कहा, ‘‘मेरे लिए अलग सादी कॉफी लाओ।’’
सामने की मेज पर एक जोड़ा आकर बैठ गया और अपने किसी निजी मज़ाक पर जोर-जोर से डँसने लगा था। विमल ने उनकी ओर देखा और नीला से कहा, ‘‘इस लड़की को पहचानती हो ? नहीं पहचानतीं ? यह मोनिका दस्तूर है। तुम मोनिका दस्तूर को नहीं जानतीं ? इसका मतलब तुम विमन्स मैगज़ीन नहीं पढ़तीं। यह बहुत मशहूर मॉडल है। इसकी तस्वीर तुमने विज्ञापनों में देखी होगी।’’

नीला ने सिर हिलाकर यह सूचना ले ली और चाँद को देखकर चुप बैठी रही। राजनाथ ने मौसम के रुखेपन की बात शुरू कर दी। पर वह बात नहीं थी; किसी आरम्भिक कक्षा का भूला हुआ पाठ था जिसे रुक-रुककर दोहराया जा रहा हो।
उनके सामने कॉफ़ी आ गई। पहली चुस्की लेकर विमल ने राजनाथ की ओर देखा; बिना कहे ही जैसे दोनों ने एक-दूसरे से कहा-घबराओ नहीं, कहीं कुछ बदला नहीं है। चाँद पहले की तरह ब्लैक कॉफ़ी पी रही है। सब कुछ वैसा ही है।
जैसे सहमे हुए बच्चों को बातचीत करने की इजाजत मिल गई हो। डाकुओं से भरे जंगल में बातों का काफ़िला ठिठक-ठिठककर चलने लगा। नीला ने कहा, ‘‘पूरा फैसला कब तक मिल जाएगा ?’’
‘‘दो महीने में।’’ विमल ने कहा।

‘‘फैसला लिखते-लिखते अगर कहीं जज को लगे कि पापा बेकसूर हैं.....’’
चाँद ने एक चुभती निगाह नीला पर डाली। फिर अपना प्याला तश्तरी पर एक अनावश्यक खट् के साथ रख दिया। नीला इससे दब-सी गई। उसने विमल से झिझकते हुए पूछा, ‘‘क्यों ? ऐसा नहीं हो सकता ?’’
उसने मेज पर कुहनियाँ टेक दीं, समझाते हुए कहा, आज के फैसले के बाद हमें थककर पूरी परिस्थिति समझ लेनी चाहिए।
‘‘अब भी कुछ समझना बाकी है ?’’ राजनाथ ने कहा।

विमल चुप रहा। सामने उसकी निगाह मॉडल पर टिक गई, पर वह उसके पीछे खिड़की पर भी टिकी हो सकती थी। नीला ने कहा, ‘‘आप कुछ कह रहे थे।’’
‘‘मैं कह रहा था, तुम्हारे पापा का मुकदमा अब खत्म हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने अपना आखिरी फैसला दे दिया है। उमर-कैद का मतलब है कि उन्हें कम-से-कम आठ दस साल जेल में रहना होगा। वे दो साल से ज्यादा जेल में बिता ही चुके है। अब हम लोगों को.....मैं यही कहना चाहता हूँ, परिस्थिति का सामना करने के दिन खत्म हो गए, अब हमें मानकर चलना चाहिए....।’’

सामने की मेज पर बैठी हुई लड़की ने-लाल ओंठ, नकली भँवें, शरारती आँखों से विमल की ओर देखा। विमल अब भी उसकी ओर निगाह लगाए था, पर अब निश्चय ही उसे नहीं देख रहा था। यंत्र की तरह, चाँद को छेड़कर सभी की आँखें एक पल के लिए उधर ही उठ गईं। पर शायद वे दुनिया से निर्वासित हो चुके थे जहाँ लाल ओंठ और शोख आँखें, पगलाया संगीत और बेपनाह खुशियाँ हवा में अफीम की मिठास भी घोल देती हैं। इस हवा में जैसे जस्ता घुल रहा हो। धीरे-धीरे लड़की की आँखों की हँसी बुझ गई। वह धीरे-धीरे मेनू के पन्ने पलटने लगी। विमल कहता रहा :
‘‘राज, दुर्गादास तुम्हारे पापा हैं, पर वे मेरे भी कुछ हैं। पंद्रह सालों में मैं तुम्हें बड़े भाई की तरह मानता आया हूँ। इसलिए यह न सोचो कि तुम्हारा दुख नहीं समझता। पर....।’’
राजनाथ ने सिगरेट जलाई। कहा, ‘‘कोई और बात करें अंकल।’’

सामने की मेज पर, न जाने क्यों, लड़की का साथी एंग्लो-इंडियन अंग्रेजी में वेटर को डाँटने लगा था। काउंटर के पीछे से मेनेजर ने निकलकर चतुरता और क्षमा याचना की घुली-मिली मुस्कान के साथ उनकी ओर बढ़ना शुरू किया।
विमल ने उधर से निगाह हटा ली और राजनाथ से कहा, ‘‘नहीं, अब असलीयत से मुँह चुराना ठीक नहीं है। तुम लोग मुँह लटकाकर इस तरह कब तक बैठे रहोगे ?’’
उसने नीला और चाँद-दोनों की ओर देखा। चाँद का सिर कॉफ़ी के खाली प्याले पर झुका था। नीला ने सिर हिलाकर जताया : ठीक है, जले हुए घर की राख में एक बार फिर ढूंढ़ लिया जाए। शायद कुछ बच गया हो। विमल ने कहा।
‘‘छ: महीने तक, हाई कोर्ट ने जब हमारी अपील पर फैसला नहीं सुनाया था, हमने क्या-क्या नहीं सहा ! आखिर वहाँ से अपील का निबटारा हुआ। फाँसी की सजा घटकर आजीवन कारावास की सजा रह गई। याद करो, उस दिन हमें कितनी खुशी हुई थी। हमें उस खुशी को याद रखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट से उन्हें छुड़ा लेने की आशा में हमने कुछ दिनों के लिए उस खुशी को ठुकरा दिया था। अब हमें फिर घूमकर उसी जगह आ जाना चाहिए। समझना चाहिए कि हाई कोर्ट ने फाँसी की सजा घटाकर आजीवन कारावास की कर दी है और बात यहीं खत्म हो गई।’’
किसी ने कुछ नहीं कहा।

‘‘हमारे सामने अब दो-तीन बातें साफ हो गई हैं। दुर्गादास को कुछ बरस जेल में रहना पड़ेगा। उन्हें पहले भी छुड़ाने की कोशिश हो सकती है। उन्हें ब्लड़-प्रेशर है, शायद उनकी तंदुरुस्ती को देखकर सरकार उन्हें पहले ही छोड़ दे। जो भी हो, इसके बारे में कुछ दिन बाद सोचेंगे।........’’
‘‘दूसरी बात बिजनेस की है। उसे तुम देख ही रही हो।’’ उसने राजनाथ से कहा, ‘‘अगर दुर्गादास आज जेल में न होते तो तुम उनसे जिस तरह उनकी मदद का भरोसा करते, उतना भरोसा तुम मुझ पर भी कर सकते हो।
‘‘और तीसरी बात चाँद, तुमसे; और नीला, तुमसे। इसका पूरा यकीन रखो, तुम्हारे पापा को सजा भले ही मिली हो, पर वे बेकसूर हैं।’’
‘‘चाँद ने दूसरी ओर देखते हुए धीरे से कहा, ‘‘पर अकेले हमारे मानने से क्या होगा ? सारा संसार, सुप्रीम कोर्ट तक, उन्हें मुजरिम मानता है।’’

‘‘पर चाँद......।’’
‘‘नहीं, उसने निर्ममता से कहा, ‘‘आप खुद कह रहे थे, असलियत से मुँह चुराना ठीक नहीं है। अब असलियत यही है कि पापा ने खून किया है। हमें अब यह मानकर चलने की आदत डालनी होगी।’’
वे चुप बैठे रहे। विमल ने ही खामोशी तोड़ी। हल्के ढंग से कहा, ‘‘ऐसी बात कहकर तुम तो अपनी नीला भाभी को भी मात दे रही हो।’’ उसने फिर समझाना शुरू किया, ‘‘चाँद, तुम एम.एस.सी. कर चुकी हो रिसर्च कर रही हो। कम-से-कम तुम्हें इतना भावुक न बनना चाहिए। तुम समझती हो मैं तुम्हारे पापा को यों ही......सिर्फ तुम्हें बहलाने के लिए...बेकसूर बता रहा हँ ?’’
चाँद ने विमल की पूरी बात सुन ली। फिर अपना सिर पहले की तरह अपने प्याले पर झुका लिया। नीला ने कहा, ‘‘बहलाने के लिए सही, कम-से-कम आप वह तो नहीं कहते, जो सारी दुनिया कह रही है।’’


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